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यीशु की शिक्षा सुनने तथा अपनी आंखों से उसके आश्चर्यकर्मों को देखने के लिए लोगों की बड़ी भीड़ उसके पीछे आ रही थी। लोगों के प्रति अपनी चिन्ता दिखाने के लिए यीशु ने अपने चेलों से पूछा कि क्या उस दिन लोगों की एकत्रित भीड़ को खिलाने के लिए उनके पास कुछ भोजन उपलब्ध है। पूछने पर पता चला कि चेलों को केवल एक ऐसा लड़का ही मिला जिसके पास एक टोकरी में कुछ मछलियां और कुछ रोटियां थीं।
उस थोड़े से भोजन को लेकर यीशु ने उस पर आशीष मांगी तथा उसे अपने चेलों से जहां तक भोजन पहुंच सकता था, बांटने के कहा। आश्चर्यजनक रूप से, भोजन की मात्रा बढ़ती गई, तथा परमेश्वर की सामर्थ्य उपयोग करते हुए यीशु ने 5000 लोगों को भोजन खिला दिया। और लोगों के पूर्ण रूप से तृप्त हो जाने के उपरान्त भी बहुत सा भोजन शेष भी बच गया।
इस आश्चर्यकर्म से लोग अचरज में पड़ गए तथा यीशु के साथ उनके प्रेम तथा उसकी शक्तियों ने उन्हें पमेश्वर के इस भविष्यवक्ता की बात सुनने को विवश कर दिया।
यदि उस दिन आप यीशु को रोटियां तथा मछलिया कई गुना बढ़ती हुई देखते तो कैसा अनुभव करते?
आप क्या सोचते हैं कि आश्चर्यकर्म ने उस लड़के के यीशु में विश्वास को कैसे प्रभावित किया होगा?
यदि यीशु उस छोटे लड़के की दो मछलियों से 5000 लोगों को खिला सकता है तो कैसे वह आपके पास थोड़ी सी वस्तु का उपयोग दूसरों के लिए कर सकता है?
क्या आप सोचते हैं कि यीशु आपके माध्यम से दूसरों के लिए महान कार्य कर सकता है?
यह कहानी मूल रूप से यूहन्ना 6:1-14 में पढ़ने को मिलती है इसकी समानान्तर कहानियां मत्ती 14:13-21, मरकुस 6:32-44 तथा लूका 9:10-17 में मिलती है किन्तु यूहन्ना में कुछ अतिरिक्त बातें जोड़ी गयी हैं। यह आश्चर्यकर्म ऐसे कुछ आश्चर्यकर्मों में से एक है जो चारों सुसमाचारों में पाया जाता है।
यह कहानी यह भी दिखाती है कि कुछ लोग यीशु से कुछ लाभ प्राप्त करने के लिए उसके पीछे चलते हैं उनके हृदय में विश्वासयोग्यता से उसके शिष्य बनने की इच्छा नहीं होती।